शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

“इमोसनल” अत्याचार


कितनी क़िताबी भाषा का इस्तेमाल होता आया है, संगीत के लिए. लेकिन मैं इस तरह की बातों से सहमत रहता हूँ क्योंकि ये सही और ज़मीन से जुड़े शब्द होते हैं, जिनके व्यापक प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता. अभी मेरे साथ रहते हैं अमित त्रिवेदी, जिनके लिए ये कहना गलत नहीं होगा कि इनका संगीत सीधे आत्मा से छनकर बाहर आता है. जोश और नयापन, जो हर बार पिछले से अलग और ज्यादा होता है और हमेशा की तरह अपने उसी तेज़ रूप में उपस्थित होता है जहाँ ये किसी की भी उपस्थिति को सिरे से ख़ारिज करता हुआ हाला आता है.

जी हाँ, फिर से याद दिलाया जाए कि ये वही अमित त्रिवेदी हैं – तेरा इमोसनल अत्याचार. अब शायद समय आ गया है कि फिल्म संगीत की बूढी हो चुकी रीढ़ की हड्डियों को भरपूर आराम दिया जाए, जिन पर फिल्म संगीत एक लम्बे समय से घिसटता चला आ रहा है.

अब तुम चुप रहो! ये मेरा समय है! दम हो तो आओ सामने!….. अमित का संगीत सुनने के बाद ऐसा लगता है कि वे अपने आलोचकों से कुछ ऐसा ही कहते हैं, इन्होनें संगीत को एक नया आयाम दिया और उसके भिन्न-भिन्न और अपरिचित रूपों से सबको अवगत कराया.

फिल्म आमिर से शुरू हो, नो वन किल्ड जेसिका तक अमित का सांगीतिक सफ़र कितना ज़्यादा बहाव में रहा है, ये शायद किसी से छिपा नहीं है. स्कूली बैंड ओम से लाईमलाईट से आने वाले अमित को राष्ट्रीय पुरस्कार से हटकर जो भी मिला वो सिर्फ़ प्यार था, न कोई अलंकरण सम्मान और न कोई ऑस्कर, संगीत-प्रेमियों नें किसी दामाद की तरह अमित को प्यार और सम्मान दिया जो शायद किसी दूसरे ‘नये’ संगीतकार को मयस्सर नहीं हुआ.

सार्वजनिक तौर पर सक्रिय न रहने वाले इस संगीतकार नें फिल्मों को बस अपने संगीत के बल पर ही एक बने-बनाए ढर्रे से अलग हटाया. किसी दृश्य में इनके संगीत की उपस्थिति, उस दृश्य को देखने का नया दृष्टिकोण देती है. ऐसा क्यों है कि किसी दूसरे संगीतकार के गीतों पर कंधे नहीं फड़कते हैं, क्यों कोई दूसरे संगीतकार स्नायुओं में नहीं घुस पाते या कहीं और चाँद की चूड़ी का जिद्द क्यों नहीं दीखता है…और वो भी हमेशा. मेरी समझ से रॉक श्रेणी के तरीक़े का अलग और उन्मुक्त ढंग से प्रयोग अमित के अलावा किसी संगीतकार नें नहीं किया. फ्री गिटार और ओपन रिदम को अमित ने जिस खूबसूरती से अपने गीतों में उतारा है, वो बेशक़ तारीफ़ के क़ाबिल है.

रहमान मेरे प्रिय संगीतकारों में आते हैं लेकिन अमित के आने के बाद वे (मेरे लिए) दूसरे पायदान पर आ गये हैं. कॉमनवेल्थ गेम्स के संगीत को और बेहतर तरीक़े से अमित सजा सकते थे, क्योंकि ये साफ़ है कि दिल्ली एक चमचमाती नदी की तरह उनके संगीत में दीखता है, उदाहरण के लिए नो वन किल्ड जेसिका के गीत दिल्ली को सुन लीजिये, द..द..द..द..द..द..द..दिल्ली..दिल्ली..दिल दिल दिल…मेरा काट कलेजा दिल्ली ले गयी..मोहे दिल्ली ले गयी, मेरी जान भी ले जा दिल्ली ससुरी दिल्ली दिल्ली दिल्ली. इसे बस एक बार दिल्ली-६ के गीत दिल्ली के साथ रखकर देखिये, अन्तर ख़ुद-ब-ख़ुद सामने आ जायेगा. मेरे दिल्ली प्रेम को अमित त्रिवेदी ही सही सुर (सुरूर) दे पाते हैं.

किसी भी तरह के प्रदूषण से बचा हुआ संगीत, अपने हर रूप के साथ आपका समझौता कराता हुआ आता है और अपने किसी भी रूप को दूसरे से कम नहीं होने देता है.

देव डी, अगर आपको देखना है कि अमित के संगीत की “रचना-प्रक्रिया” क्या है, तो सुनिए इस फिल्म को, हिक्क्नाल और पायलिया जैसे गीत, फिल्म-संगीत को आई-पॉड या कानफोडू वर्ग की पहुँच से दूर ले जाकर स्थापित करते हैं. स्ट्राईकर फिल्म का चम्-चम् गीत भी तो बढ़िया है. इसके दिल्ली प्रेम को इनकी आदतों में शुमार नहीं किया जाना चाहिए, इसका पता स्ट्राईकर के गीत बॉम्बे से अच्छे से चल जाता है.

सुनिए अमित त्रिवेदी को, जानिए अलग कुछ और जोड़िए पुराने ढर्रे में नया कुछ….बूम-बूम-बूम-बूम पारा.

1 टिप्पणियाँ:

anurag vats ने कहा…

कितनी हार्दिकता है अमित के लिए और क्यों इसे तुमने हम सबकी तरफ से यहां दर्ज कर दिया है सिद्धांत…अमित हमारी ही आत्मा का कोई छंद बजाते हैं, तभी इतना अपील करते हैं…हालांकि रहमान से उनकी तुलना व्यर्थ है…अमित के वैशिष्ट्य का इस तरह रेखांकन अच्छा लगा…हमें ऐसे प्रोज की दरकार है.