मंगलवार, 17 जनवरी 2017

रोहित के मरने से क्या होता है

रोहित जब मरता है तो देश एक लम्बे उलटफेर में बैठ जाता है, इस्तीफ़े मांगे जाने लगते हैं और प्रदर्शन होने लगते हैं. छात्रों के आंदोलित होने के साथ नियमतः कुलपति लोग भी आंदोलित हो ही जाते हैं. कुलपति आंदोलित होते हैं ऊपर से डंडा पड़ने पर. ऊपर से जब डंडा पड़ता है तो पता चलता है कि भीड़ का दिमाग़ बहुत ऊंची छलांग मार चुका है.


'ऑलिवर स्टोन' की फिल्म 'द डोर्स'

मानव संसाधन विकास मंत्रालय धीरे-धीरे कपड़ा मंत्रालय में बदल जाता है और कपड़ा मंत्रालय बहुत पहले ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय में बदल चुका होता है. कपड़ा इसलिए कि काग़ज़ों से दूर दीक्षांत समारोहों के कपड़े बदले दिए जाते हैं और छात्र राष्ट्र की भावना समझें, इसके लिए कपड़े का झंडा भी फहराने की योजना पर काम किया जाता है. इसलिए कपड़ा मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय एक दूसरे के पूरक साबित होते हैं.

और क्या होता है?

कन्हैया कुमार उठ खड़ा होता है, वह आंदोलन करता है. वह बहुत सारे आंदोलनों की एक बड़ी आवाज़ बन जाता है. यह आवाज़ हलक से तब ग़ायब होती है जब वह चुप हो जाता है, एक किताब निकालता है और फिर एक और, फिर अपनी आवाज़ों को समेटकर शायद धुंधलके में बैठ जाता है. और उमर ख़ालिद फिर भी धीमी-धीमी लेकिन मज़बूत आवाज़ों के साथ लगा रहता है.

डेल्टा मेघवाल मरती है और राजस्थान में शराब के दामों पर पुनर्विचार किया जाता है. राहुल गांधी डेल्टा को इंसाफ़ दिलवाने का वादा करते हैं और डेल्टा मेघवाल के मामले में क्या होता है, किसी को कुछ नहीं मालूम.

छत्तीसगढ़ में और झारखंड में भी बहुत कुछ होता है, होता है इतना कि वहां जाने वाला पत्रकार गिरफ़्तार हो जाता है, मानवाधिकार कार्यकर्ता तो गिरफ़्तार होने के लिए बने ही थे.

एक खोयी हुई वेबसाइट पर रोहित वेमुला को 'असंतुलित' कहा जाता है, यही क्या कम है?

गुजरात में चार दलितों को वाहन के पीछे बांधकर मारा जाता है, गुजरात को दिखता है कि दलितों ने शपथ ले ली है कि वे अब मैला नहीं उठाएंगे. जिग्नेश मेवाणी कई बार गिरफ़्तार होते हैं. बहुत बड़ा आंदोलन होता है. चार पीड़ित भाजपा का हाथ पकड़ते हैं फिर न ख़बरों में वे दलित दिखायी देते हैं और न ही जिग्नेश.

बहुत सारे छात्र राष्ट्रद्रोही साबित तो होते हैं, इसमें समस्या क्या है? यह अच्छा है क्योंकि अब सिनेमा हॉल में बजेगा 'राष्ट्रगान'.

रोहित के मरने के बाद बंद होते हैं नोट, कुछ लोग मरते हैं. इन मौतों को सहजता से लेते हुए हम कहते हैं कि भ्रष्टाचारियों पर कस गयी है नकेल. इस तथ्य से दूर कि 97 प्रतिशत पुराना पैसा बैंकों में अब वापिस है.

दादरी का अध्याय मत खोजो पांडू, वो तो पहले ही मर गया था. वरुण ग्रोवर सही कहता है कि उसकी मौत और उसके मौत की जांच किसी चुटकुले से कम नहीं है, लेकिन क्या फ़र्क़ पड़ता है कि मर गया था कोई.

हिन्दी कविता पर मुक्तिबोध का जितना उपकार है, उससे बड़ा उपकार मुक्तिबोध ने समाज पर कर दिया है. ऐसे ही नहीं हमने उस लड़के को उस भोर इस कविता का पाठ कराया था.

'मेरा दिल ढिबरी-सा टिमटिमा रहा है'

रोहित मरता है तो देश का एक साल का कैलेंडर युवाओं के आसपास लिखा पड़ा होता है. हममें से कई लेखक, छात्र या पत्रकार अपना कम्फ़र्ट ज़ोन धीरे-धीरे तोड़ते हैं. कुछ नहीं तोड़ते हैं तो फ़िल्में ही देखते हैं. हम भी देखते हैं. हम थोड़ा और शिद्दत से प्रेम करने लगते हैं.

रोहित भारत का नया चे ग्वेवारा बनकर उभरता है. वह एक आइकन में बदलता है.

एक प्रकाशक बताता है कि इस साल Annihilation of Caste बहुत ज़्यादा बिकी. अम्बेडकर समग्र भी बहुत भर-भर उठाया गया पुस्तक मेले से. लोग पढ़ने लगे अम्बेडकर को. लोग शिक्षित हुए कि अम्बेडकर से क्या कुछ सीखा जा सकता है? रोहित ने शिक्षा को थोड़ा और चौड़ा किया.


रोहित जातियों को समझने के रास्ते खोलता है.

रोहित के जाने के बाद पता चला कि अंतिम पत्र की भाषा भी कितनी महान हो सकती है, बहुत दिनों तक यह सोचना ज़रूरी हो जाता है कि मरने के पहले भी ऐसी महान भाषा कहां से आती है?

और बीच में ही कहीं पूर्वोत्तर से लड़कियों की ट्रैफ़िकिंग की ख़बर प्रकाशित होती है, और उस पत्रकार के ख़िलाफ़ केस भी दर्ज हो जाता है. कोई एक अन्य पत्रकार लिखता है कि संगठन ने सभी को रोहित वेमुला समझ लिया है, लेकिन संगठन नहीं जानता कि रोहित वेमुला कितनी बड़ी ताक़त है.


बुरी आदतें धीरे-धीरे लौट आती हैं. कुछ प्रेम फिर से जीवन को बहुवचन बनाते जाते हैं. डर धीरे-धीरे घर करता है और जेब धीरे-धीरे ही खाली होती है.

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