बुधवार, 7 अप्रैल 2010

“अप”….थोड़ा और ऊपर

पिक्सार एनीमेशन स्टूडियो की प्रस्तुति “अप”…. सोचा कि पहली पोस्ट के तौर पर इसे ही चुना जाये क्योंकि मैंने इतने शांत और संवेदनासंपन्न विषय पर इससे अच्छी एनीमेशन फिल्म अभी तक नहीं देखी. “पीट डॉक्टर” और “बॉब पीटरसन” द्वारा लिखित-निर्देशित ये फिल्म मुझे सचमुच बहुत ही पसंद आई. अपने जीवनसाथी से किये वादे को निभाने के लिए कोई किस हद तक जा सकता है यही इस फिल्म की मूल विषय-वस्तु है.


 
“कार्ल फ्रेडरिक्सन” एक शांत और शर्मीला लड़का है जो “चार्ल्स”, जो कि एक खोजी है और समाज द्वारा बहिष्कृत होकर दक्षिण अमरीका में कुत्तों की लम्बी-चौड़ी फौज के साथ और काफ़ी गुस्से के साथ एकाकी जीवन बिता रहा है, से प्रेरित है. खेल-खेल के दौरान उसकी दोस्ती अपने ही जैसी उत्सुक लेकिन अपने से ज़्यादा तेज़-तर्रार लड़की “एली” से होती है. एली का ख़्वाब है कि उसका अपना एक घर दक्षिण अमरीका के खूबसूरत झरनों पर हो. कार्ल एक शांत-सा बच्चा है और सपने कम देखता है, लेकिन एली के साथ दोस्ती और दोस्ती से आगे जाता रिश्ता उसे भी उसी झरने वाले घर में एली के साथ होने की प्रेरणा देता है.

बहरहाल, कार्ल और एली की शादी होती है और उन दोनों की उम्र ढलती जाती है लेकिन  बीच का प्यार और उन दोनों का खोजी उत्साह ज़रा सा भी कम नहीं होता है, उन्होंने अब भी अपने घर का सपना नहीं छोड़ा है. एली का देहांत हो जाता है और बूढा कार्ल घर में अकेला रह जाता है, अपने घर को एक बिल्डर से बचाने के लिए आनन-फानन में हज़ारों गुब्बारों से बाँध कर दक्षिण अमेरिका के उन झरनों की तरफ एक गैस के गुब्बारे की तरह उड़ा देता है, और इसी आनन-फानन में एक छोटा चुलबुला-सा स्काउट “रसल” घर में आ जाता है.

इसी के बाद से असल कहानी शुरू होती है…जब कार्ल और रसल झरनों की तरफ अपना सफ़र तय करते हैं, और उनकी मुलाक़ात बीहड़ों में चार्ल्स और उसके आदमखोर कुत्तों से हो जाती है, ये कुत्ते इंसानों की आवाज़ में बोलते हैं.

कार्ल का उस बच्चे रसल से बढ़ता प्यार इस कहानी को अपने अंत तक ले जाता है…

मैंने इस फिल्म का हिन्दी डब संस्करण देखा था जिसमे सौभाग्यवश अनुपम खेर को कार्ल की आवाज़ देते सुना. इस फिल्म की कहानी प्रेम की हदों को पार करती है, रोमांच की हदों को पार करती है और हाँ,खतरों को भूलना नाइंसाफी होगी.

“अप” के पहले मैंने दो ही ऐसी एनीमेशन फ़िल्में देखीं जो इस फिल्म को टक्कर देती हुई दिखती हैं और वे है “बोल्ट” जो एक कुत्ते की कहानी है और “वॉल-ई”, जो मानव सभ्यता को बचाने की कहानी कहती है….हालांकि “बोल्ट” काफी कम चर्चा में रही.

“अप” को देखने के बाद ऐसा लगता है कि फिल्मों में फालतू बातों का ज़रा भी उपयोग नहीं है, फिल्म की कहानी एकदम सधी हुई और आपको बांध कर रखने वाली है.

पहली पोस्ट में ही इतनी देर हो गयी कि इसे आपके सामने ऑस्कर पुरस्कारों की घोषणा के बाद ला पाया हूँ जहां इस फिल्म ने एनिमेटेड फिल्मों की श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार जीता. हरियाली, प्रकृति, प्रेम, सम्मान और संकल्प जैसे तत्व इसे कलेजे तक उतार देते हैं. जिन्होंने अभी तक ये फिल्म नहीं देखी है वो मेरे अनुरोध पर इस फिल्म को ज़रूर देखें.

6 टिप्पणियाँ:

vyomesh shukla ने कहा…

स्वागत है सिद्धांत. ख़ूब-ख़ूब शुभकामनाएँ. आपके अनुरोध पर यह फ़िल्म और दूसरी फ़िल्में भी ज़रूर देखेंगे हम.

शिरीष कुमार मौर्य ने कहा…

swaagat siddhaant! film khojte hain.

ashish kumar verma ने कहा…

sahi hai guru!!!!!!

jayantijain ने कहा…

good review of film

Manika ने कहा…

That was truly a love story.love between two friends, between a old married couple and love between an old man and a kid. well done Ssiddhant! a very well starting, but why so late?Congrats bhai!

anurag vats ने कहा…

maine ab up dekh li hai aapki kripa se…bahut sundar…mera dhyan idhar gaya hai…bhatkunga ab idhar bhi…